राजीव गांधी ...
हजारों वर्षोंा से भारत ने आध्यात्मवाद की दिशा में अधिक विकास किया है, भौतिक दिशा में कम। पारम्परिक रुप से ही भारत का विश्वास रहा है कि मनुष्य और प्रकृति एक है और दोनों एक दूसरे के अभिन्न अंग है। इससे हमारी प्रकृति के बारे में जागरुकता आई है, हम प्रकृति के लिए महसूस कर सकते हैं।
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कार्टून |
भारत में प्रौद्योगिकी क्रांति आने से दोनों दिशाआें में विवाद खड़ा हो गया है। हमने अपनी प्रौद्योगिकी का विकास किया है। हमने अपने उद्योगों का विकास किया है और हम महसूस करते हैं कि हम अपनी पारम्परिक अध्यात्मवाद की गहराई और शक्ति से दिन पर दिन दूर होते जा रहे हैं। इससे हमारे सामाजिक ढांचे में कुछ समस्याएँ पैदा हो गई हैं। आज हम फिर से इन दोनों पहलुआें पर बराबरी के निर्माण करने की सोच रहे हैं।
हम स्कूल स्तर से ही पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरुकता लाने की कोशिश कर रहे हैं। पर्यावरण दूषित होने के भयंकर परिणामों से लोगों को परिचित करा रहे हैं। आखिरकार लोगों में जागरुकता ही पर्यावरण संरक्षण में सहायक हो सकती है।
किसी भी प्रकार के कानून पर्यावरण में सरंक्षण नहीं ला सकते, विशेष रुप से भारत जैसे विशाल देश में। इस प्रकार की गोष्ठियाँ जागरुकता लाने में सहायता करती हैं और मैं उम्मीद करता हँू कि हर स्तर पर इस तरह की गोष्ठियाँ आयोजित की जानी चाहिए। केवल दिल्ली में ही नहीं, भारत के अन्य हिस्सों में ताकि हम इस जागरुकता को पैदा कर सकें।
http://paryavaran-digest.blogspot.in/2007/01/blog-post_3772.html से
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